- शबाब हैदर
पैदा हुआ हूँ जब से रिश्ता है कागज़ों से
मैं आ गया था कागज़ों पर
कभी अल्ट्रासाउण्ड के बहाने
तो कभी एक्सरे के बहाने
कभी जन्म का संदेशा भेजने के बहाने
तो कभी जन्म-पत्री के बहाने
जब हुआ एडमीशन मेरा
फार्म भरा गया कागज़ों का
किताबें पढ़ीं वह भी कागज़ों की
कापी भी कागज़ों की
नौकरी मिली तो ऐसी
वो भी पूरी कागज़ों की
जो मिली सैलरी वो भी थी कागज़ों कीपरिवार चल रहा है
कागज़ के ही सहारे
घर में देखकर अम्बार कागज़ों का
झल्लाती है पत्नी कागज़ों पर
मैं कैसे करूँ बयाँ
मेरी रग-रग में बसा है कागज़
कागज़ है अहम हिस्सा मेरी ज़िन्दगी का
मैं चाह कर भी नहीं कर सकता ज़ुदा
कागज़ों को
- शबाब हैदर
स्नातकोत्तर शिक्षक ( विज्ञान )
PGT (Bio)
SBV Mayur Vihar, ph-I, Pkt-IV,
दिल्ली-110096
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