डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर की हाइकु कविताएँ लोक की आदिम गंध से सुवासित ऐसी कविताएँ हैं जिनमें संघर्षशील जीवन की टटकी अनुभूतियाँ अपने नैसर्गिक रूप में उपस्थित हैं। उनकी हाइकु कविताएँ पाठक को अनायास आकर्षित करती हैं और प्रभावित भी। डा० कुजूर हाइकु की सिद्धहस्त रचनाकार हैं, यह भी ‘ढेकी के बोल’ की हाइकु कविताओं से स्वतः सिद्ध है। ढेकी के बोल से कुछ डा० कुजूर की कुछ हाइकु कविताएँ-
ढेकी कूटती
गुनगुनाती गीत
लोक को जीती
*
तुम्हारा छाता
खूँटी पर टँगा है
चूहों का घर
*
दिख जाता है
उसकी झोपड़ी से
चाँद का गाँव
*
आहट होते
बुझा दिये जाते हैं
घरों के दीये
*
नदी के पार
गूँजा अनहद नाद
जलपाखी-सा
*
बेटी ने झेली
कोख से कब्र तक
अनन्त पीड़ा
***
-डा० सूरजमणि स्टेला कुजूर
उप शिक्षा निदेशक
शिक्षा निदेशालय
दिल्ली सरकार
( अवकाश प्राप्त)
( अवकाश प्राप्त)
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